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story of ganeshpura koth | ganpatipura |
श्री सिद्धि विनायक भगवान गणेश के गणपतिपूरा(कोठ ) स्थित इस मंदिर के बारे में मूल जानकारी
विक्रम संवत 933 की अषाढ़ वद चौथ और रविवार के दिन हाथेल में पेड़ और झाड़ियों के पास भूमि में खोदने के दौरान भगवान गणेश की मूर्ति गोल्डन एंकलेट्स, कान में कुंडल, हेड पर क्राउन और कमर पर कंदोरा के साथ पाई गई थी। उस दिन कोठ , रोज्का और वनकुटा गांवों के नेताओं के बीच एक तर्क था कि भगवान गणेश की मूर्ति कौन ले जाए|
उन्होंने मूर्ति को बिना बैल के गाड़ी में डालने का फैसला किया और यह कहां जाने लगा कि भगवान जहा जाना चाहते है वहा जाए| बाद में गणपतिपुर में बैल के बिना गाड़ी रुक गई जहां दुदा नाम के चरवाहे ने गोकुल की शक्तिमाता की स्थापना की थी। भगवान गणेश की गाड़ी वहां रुक गई और मूर्ति बैलगाड़ी से खुद नीचे आ गई। तब से इसभूमि को गणपतिपुरा के नाम से जाना जाता था।
वर्ष 1928 में श्री सहजानंद बापा गांव गणपतिपुरा से गुजरे थे और दो रानो के बीच विश्राम करते थे।
यह साहित्य लिलापुर से भरवाड़ बरोट जिलुभाई मोहनभाई की किताबों से प्राप्त किया गया था।
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